वो सूखी परत
चाई की भुली प्याली पे
वो नए चाँदी और सफ़ेद
काले केसूँ के बीचों बीच
वो नयीं किताब
पे धूल के ढेर उधेर
वो स्कूल की सहेली
के जन्मदिन पे भुला एक कोल
वो बक्से में बंध घुंगरू
को हर साल संभाल कर रखना
वो अपनी सम्भाली खाते
में अंगिनिथ अधूरे कहानियाँ
वो अंकहे अनसूने अल्फ़स
हम दोनो की बीच
वो जल्द गुज़रती यह जिंदिगनी
अधूरा , अनदेखा बहुत कुछ
कुछ याद दिलाती, कुछ उकसती
ख़ुद को जगा के रख, ऐ मुसाफ़िर
No comments:
Post a Comment