तो है एक ही पहलू
दिल तो दोनो ही, उछालते है
ग़ैरों से ना उम्मीद कोई
ना दर्द, ना ही बेहत ख़ुशी
कुछ आज के मुसाफ़िर
कुछ कल तक के
तो क्या अपेक्षा,
और कौन सा ग़म
जवाब की उम्मीद ना थी तुमसे
पर यूँ अनदेखा करोगे
सोचा ना था
आशा और निराशा
भी तो एक ही पहलू है,
दिल तो दोनो ही दुखते है।
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