Tuesday, April 3, 2018

आशना

इतने दिनों की बातें,
ख़्वाबों से सजाया,
एक चेहरा,
हज़ारों एक ख़्वाहिशों,
से बंधी एक माला...
आज मुलाक़ात की घड़ी

यह सींचा चेहरा,
किसी और का ना हो,
कोई और ना हो,
कि बस एक मुख़्तसर मुलाक़ात हो

ऐसा भी ना हो,
कि मुलाक़ात में मसरुफ ऐसे कि
बेजा ओर बेसाबब
उल्फ़त का गुलशन बिछ जाए

डर लगता है मुझे ,
मुलाक़ातों से,
रंजिश है मुझे हक़ीक़त से,
क्या आशना की जुसतुज़ु काफ़ी है?

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Marigold

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